सित॰, 27 2025
चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन कुश्मंदा माँ को समर्पित है, जिन्हें अक्सर अष्टभुजा देवी कहा जाता है। वह शेरिनी पर सवार होकर आठ हाथों में कमल, कमण्डल, धनुष‑तीर, अमृत कलश, जप माला, गदा और चक्र धारण करती हैं। इस दिन दिल के चक्र (हार्ट चक्र) पर उनका विशेष प्रभाव माना जाता है, जिससे चिंता, भय, उदासी और अतीत के बंधनों को दूर किया जा सकता है।
कुश्मंदा का नाम तीन शब्दों से बना है – ‘कु’ (छोटा), ‘उष्मा’ (ऊर्जा) और ‘अण्डा’ (ब्रह्माण्डीय अंडा)। पौराणिक कथा के अनुसार वह सूर्य के कोर में निवास करती हैं और उसकी रोशनी एवं ऊर्जा को संचालित करती हैं। इस कारण भक्तों का मानना है कि माँ की पूजा से स्वास्थ्य, दीर्घायु, शक्ति और आर्थिक समृद्धि में वृद्धि होती है।
नवरात्रि के इस दिन का शुभ रंग पीला है। पीला रंग खुशी, ऊर्जा और सफलता का प्रतीक है। इस कारण लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं, पीले फूलों जैसे कमल, बहीशाखी आदि अर्पित करते हैं और थाली को पीली कपड़े से सजा कर माँ को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।
चारवें दिन का मुख्य प्रसाद मालपुआ है, जो अपनी सुनहरी बनावट और केसर‑सिरप में डूबे होने के कारण अत्यंत आकर्षक लगता है। साथ‑साथ खीर, दही और कद्दू (कुश्मंदा) के व्यंजन भी परोसे जा सकते हैं। भोग सत्विक सिद्धांतों के अनुसार बनाना चाहिए, इसलिए प्याज, लहसुन और भारी मसालों का प्रयोग नहीं किया जाता।
पारंपरिक मालपुआ रेसिपी
सिरप के लिये:
सजावट के लिये बारीक कटे पिस्ता – 15‑20 ग्राम।
बेटर बनाने के बाद इसे एक घंटे तक आराम दें, फिर घी में गोल‑गोल आकार के पैनकेक तलें और केसर वाली शर्करासिरप में डालें। अंत में पिस्ता से सजाकर प्रसाद तैयार करें।
व्रत‑अनुकूल मालपुआ रेसिपी
सिंघाड़े के आटे में सभी सुँघन सामग्री मिलाकर दूध से गाढ़ा बैटर बनाएं, एक घंटे के लिये रख दें। फिर समान आकार के पीसों को घी में हल्का सुनहरा तलें और केसर‑शर्करासिरप में भिगो दें। यह रेसिपी व्रती लोगों के लिये हल्की और पचने योग्य है।
मालपुआ के अलावा निम्न भोग भी लोकप्रिय हैं:
पूजन में मुख्य मंत्र "ओम् देवी कुश्मंदायै नमः" दोहराया जाता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और माँ के आशीर्वाद आते हैं। प्रसाद तैयार होने के बाद इसे परिवार और मित्रों में वितरित किया जाता है; माना जाता है कि जो इस पवित्र भोजन को ग्रहण करता है, उसे स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि प्राप्त होती है।
ऐसे विशेष दिन पर न केवल भोजन की तैयारी, बल्कि मन की शुद्धि भी आवश्यक है। पूजा स्थल को साफ‑सुथरा रखें, मन को शान्त रखें और ह्रदय में प्रेम व कृतज्ञता के साथ प्रसाद अर्पित करें। इस प्रकार चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन का गहरा आध्यात्मिक अर्थ और स्वादिष्ट मालपुआ दोनों ही जीवन में मिठास लाते हैं।
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